जब मैं सब्जी खरीदने गया तो दुकानदार का छोटा बच्चा अपनी माँ से साइकिल खरीदने की हठ कर रहा था और उसकी माँ उसे विभिन्न प्रकार से बहलाने का प्रयास कर रही थी । अंत में बच्चा पास में खडी मेरी साइकिल पर चढने लगा । खरीदारी करने के बाद जब मैंने साइकिल निकालनी चाही, तो बच्चा हटने के लिए तैयार न हुआ । मैंने बडे प्यार से कहा –
— ऐसे ही किसी की भी साइकिल पर बैठ जाओगे, कोई चलने को कहेगा, तो चल दोगे ? यह तो मैं हूँ, लेकिन अगर कोई उठा ले गया तो ?
लडका चुप रहा, फिर अपनी माँ के द्वारा भी वही बात कहे जाने पर साइकिल से उतर गया ।
लौटते समय मैं सोच रहा था, कितना सहज और विश्वासी मन होता है बच्चों का । व्यक्ति बाल्यकाल में अपरिचित पर भी विश्वास कर लेता है, और वयस्क होने पर परिचित तथा मित्र पर भी संशय करता है ।
photo credit: Nithi clicks A smile is happiness you’ll find right under your nose. via photopin (license)
amit ji ap IIT bombay posting le lijiye , aap itna achcha likhte hai ki ho sakta hai aap kisi bollywood film ka hissa ban jaye. aapke lekh or shabdo ka chayan kisi sahityakar ki tarah hai
बहुत-बहुत धन्यवाद रुपेश । लेकिन क्या तुम्हें लगता है कि हिन्दी फिल्मों के संवाद या कहानी लिखने के लिए किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता होती है ? 🙂
Innocence is abused in this world sadly….May the little child find happiness and love wherever he goes…..But I wish him to be cautious in future too…..
Yes Sunaina, caution seems to be the only way to stay safe. And it hold true for everyone, not just children.