रचनाकार – ऋतेश मिश्रा

क्यों आग बुझा नहीं देते
क्यों आग बुझा नहीं देते?
नफरत से प्रचंड कर, विसंगति से विपुल कर
क्यों चिनगारियों को मशालों मॆं धधका देते?
क्यों आग बुझा नहीं देते?
कई लाख शिराओं में ज्ञान शिखा जलानी है
लाखों लाख उदरों में दो मुठ्ठी अन्न पहुँचानी है
टेढी-मेढी पगडंडियों को तीव्र मार्ग बनाना है।
लाखों लाख उदरों में दो मुठ्ठी अन्न पहुँचानी है
टेढी-मेढी पगडंडियों को तीव्र मार्ग बनाना है।
क्यों आग बुझा नहीं देते?
नफरत से प्रचंड कर, विसंगति से विपुल कर
क्यों चिनगारियों को मशालों मॆं धधका देते?
क्यों आग बुझा नहीं देते?
बढते-उठते हाथों में काम-कलम पहुँचानी है
खिलते-डिगते पैरों में, कन्दुकेन बढानी है
कुछ थम कर चलती, बूढी आँखों में, आस की अलख जगानी है।
खिलते-डिगते पैरों में, कन्दुकेन बढानी है
कुछ थम कर चलती, बूढी आँखों में, आस की अलख जगानी है।
क्यों आग बुझा नहीं देते?
नफरत से प्रचंड कर, विसंगति से विपुल कर
क्यों चिनगारियों को मशालों मॆं धधका देते?
क्यों आग बुझा नहीं देते?
बुझते दिय़ों के बुझने से पहले, तडित दामिनी पहुँचानी है
दूषित होती गंगा-जमुना में, नवस्पंदन स्वच्छ बहानी है
रुकता-झुकता विश्वास ह्रदय में, कुलीन कुतुबमीनार बनानी है।
दूषित होती गंगा-जमुना में, नवस्पंदन स्वच्छ बहानी है
रुकता-झुकता विश्वास ह्रदय में, कुलीन कुतुबमीनार बनानी है।
क्यों आग बुझा नहीं देते?
नफरत से प्रचंड कर, विसंगति से विपुल कर
क्यों चिनगारियों को मशालों मॆं धधका देते?
क्यों आग बुझा नहीं देते?
कुंठित, अनैतिक विचारों को, सम्बल कर, स्वस्तिक गान बनाना है
थमकर बैठ गए पैरों में नवस्फूर्ति-उम्मीद उद्दीपन करना है
मैं और आज की चिंता को, हम सब का भावी उत्सव बनाना है।
थमकर बैठ गए पैरों में नवस्फूर्ति-उम्मीद उद्दीपन करना है
मैं और आज की चिंता को, हम सब का भावी उत्सव बनाना है।
क्यों आग बुझा नहीं देते?
नफरत से प्रचंड कर, विसंगति से विपुल कर
क्यों चिनगारियों को मशालों मॆं धधका देते?
क्यों आग बुझा नहीं देते?
डॉo ऋतेश कुमार मिश्रा नासा जॉनसन अंतरिक्ष केन्द्र, ह्युस्टन, टेक्सास (संoराoअo) में कार्यरत हैं ।

photo credit: antonychammond There’s Nothing Like Revisiting an Old Flame! via photopin (license)
Wonderful poem.
LikeLiked by 1 person
Bahut Khoob Ritesh!. What a blend of space research and effective literature. Keep this “Aag” on!
Santosh
LikeLiked by 1 person
Yes Sir, I also keep requesting Ritesh to continue writing regularly.
LikeLike
Fabulous post
LikeLiked by 1 person
Please read my first post
LikeLiked by 1 person