पुनश्च

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प्रद्योत के जीवन के इस नए चरण में आपका स्वागत है । मेरी साहित्य यात्रा में सहभागी होने के लिए आपका हार्दिक आभार । इस नए अध्याय का आरम्भ मैं प्रातःस्मरणीय महर्षि श्री अरविन्द को समर्पित करता हूँ तथा हिन्दू धर्म पर अपनी पूर्वलिखित लघु टिप्पणी आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ —

यह जानना चाहिए कि हिन्दू धर्मग्रन्थों में दी गई कोई भी कहानी मात्र कथा साहित्य नहीं है, अपितु एक गहन दर्शन को निरूपित करती है । दुर्भाग्यवश आज के हिन्दू मात्र शाब्दिक अर्थ से ही संतुष्ट हो जाते हैं और दर्शन तथा ज्ञान में किसी प्रकार की जिज्ञासा अथवा रुचि नहीं दिखाते हैं । सावित्री की कथा मात्र किसी स्त्री के पतिव्रत को निरूपित नहीं करती । यदि आपने उस कहानी के पात्रों के नामों पर ही ध्यान दिया होता तो भी सभी कुछ स्पष्ट हो गया होता — सत्यवान, सावित्री, अश्वपति इत्यादि । महर्षि अरविन्द के अनुसार, सत्यवान आध्यात्मिक सत्य को अपने अंदर धारण किए हुए आत्मा है जो मृत्यु और अज्ञान के पाश में गिर गया है । सावित्री, सूर्य की पुत्री, अर्थात् आध्यात्मिक शब्द है, अनन्त सत्य है जिनका अवतरण परित्राण के लिए हुआ है । अश्वपति तपस्या के देव हैं, वह आध्यात्मिक चेष्टा जो जीव को मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाती है । द्युमत्सेन, सत्यवान के पिता, आध्यात्मिक बुद्धि हैं जो अंध हो चुके हैं । यह मात्र गुणों का मानवीकरण ही नहीं है, अपितु यह सभी आध्यात्मिक शक्तियाँ हैं जिनका अवतरण मनुष्य को उसकी परम उपलब्धि प्राप्त कराने के लिए हुआ है । आध्यात्मिक तत्वों को मानवीय तल तक खींचकर लाना तथा उन्हें मानवीय संबंधों में बाँधना और सीमाबद्ध कर देना उचित नहीं है ।

photo credit: starmist1 Dahlia Opening via photopin (license)

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