Tag Archives: Hindi

हम सब भारतवासी भाई-बहन हैं !

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photo credit: Beegee49 Happy Children via photopin (license)

मुझे अपनी मित्रमण्डली में चल रही एक विशेष विषय पर बातचीत याद आ रही है । आप तो जानते ही हैं, विवाहित मित्रों की एक ही तो समस्या होती है — अपने अविवाहित रह गए मित्रों का विवाह । और मेरी समस्या थी कि जब भी मैं किसी कन्या को पसंद आता, वह झट-से मुझे अपना भाई बना लेती — ‘तुम्हारी शक्ल मेरे भाई से मिलती है’ । फिर जैसे हिन्दू लोग मूर्ति को ईश्वर मानकर उसकी पूजा करते हैं, उसी प्रकार मुझे अपने भाई का प्रतीक मानकर राखी आदि बाँधने लगतीं । और हम न इधर के रहे न उधर के — असली भाई तो थे ही नहीं, और संबंधी भी बन नहीं पाए । जब असली भाई आ गया, तो हमें सुरेश वाडकर का गाना सुनने के लिए छोड दिया गया — साँझ ढले गगन तले हम कितने एकाकी . . . । Continue reading

कितना आवश्यक है हिन्दी में अंग्रेजी शब्दों का बढता प्रयोग ?

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स्रोत : http://kiranbatni.com

हिन्दी दैनिक जनसत्ता में प्रकाशित एक पत्र में अभिषेक त्रिपाठी ने कुछ विद्वानों के इस प्रस्ताव पर टिप्पणी की है कि यदि हिन्दी भाषा में अंग्रेजी आदि भाषाओं से शब्द मिला लिए जाएँ, तो इसे अधिक समृद्ध बनाया जा सकता है । Continue reading

ये क्या देखता हूँ

रचनाकार — प्रदीप बहुगुणा ‘दर्पण’

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ये क्या देखता हूँ

किसी बुरी शै का असर देखता हूं ।
जिधर देखता हूं जहर देखता हूं ।।

रोशनी तो खो गई अंधेरों में जाकर ।
अंधेरा ही शामो सहर देखता हूं ।। Continue reading

क्यों आग बुझा नहीं देते

रचनाकार – ऋतेश मिश्रा 

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                    क्यों आग बुझा नहीं देते

                    क्यों आग बुझा नहीं देते?
                    नफरत से प्रचंड कर, विसंगति से विपुल कर
                    क्यों चिनगारियों को मशालों मॆं धधका देते?
                    क्यों आग बुझा नहीं देते? Continue reading

ख्वाइशें कुछ ऐसी

रचनाकार – हेमा जोशी

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photo credit: hehaden Faded glory, fading light via photopin (license)

ख्वाइशें कुछ ऐसी

ख्वाइशें कुछ ऐसी, नन्हे जुगनू जैसी
अंधेरे में उस उजाले की तरह, जिसे उंगलियाँ छूना चाहती हैं
हैं अनगिनत तारों की तरह,
जिन्हें मैं हर रात निहारती हूँ, बातें करती हूँ
और छू लेना चाहती हूँ
हैं प्यारी, अनगिनत ओस की बूंदों की तरह
ये ख्वाइशें कुछ ऐसी,
जो उड़ जाना चाहती हैं पंख लगाकर Continue reading

इंद्रासन प्राप्त करो तुम

रचनाकार – गौरव मिश्र

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photo credit: Miradortigre Aoraki via photopin (license)

इंद्रासन प्राप्त करो तुम

अस्थिर अशांत इस जग में
क्यों मूक बना सोता है,
यह रत्नविभूषित जीवन

क्यों इसे व्यर्थ खोता है ?

तू नहीं जानता पागल
यह समय कभी नहीं रुकता,
यह काल अमिट अविनाशी

पद चिह्न छोडता चलता । Continue reading

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत – आचार्य जगदीश (अनुवाद)

आज के अहंकार-केन्द्रित समाज में जहाँ सभी लोग सदैव आत्मश्लाघा में ही रत रहते हैं, ऐसे दृष्टान्त अत्यन्त विरल हैं जहाँ एक महानायक ने अपने समकालीन एक अन्य महारथी का जयगान किया हो । फिर भी यदि अतीत में झाँकें तो एेसे कई दृष्टान्त हमें मिल ही जाते हैं, जैसे श्रीरामकृष्ण और विद्यासागर, हाइजनबर्ग और रवीन्द्रनाथ का साक्षात्कार, इत्यादि । ऐसे स्तुतिगान न केवल उस महापुरुष की महिमा के लिए उचित श्रद्धांजलि होते हैं, अपितु उन गायक महापुरुष की विनम्रता को भी परिलक्षित करते हैं ।  इतिहास के पृष्ठों में यत्र-तत्र बिखरे ऐसे स्तुति गान हमारी सांस्कृतिक धरोहर के रत्न-स्वरूप हैं । उस भण्डार से एक रत्न राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (28 फरवरी) के अवसर पर आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ ।

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जो गरजते हैं वो बरसते नहीं

4380042754_54ae574115_nयदि किसी से “जो गरजते हैं वो बरसते नहीं” का अर्थ उदाहरण देकर समझाने के लिए कहा जाए, तो मेरे विचार से अधिकांश लोग वेंकटेश प्रसाद और आमिर सुहेल के द्वन्द्व का वर्णन करेंगे । घटना है बीस साल पहले 15 मार्च 1996 की । कितनी आश्चर्यजनक बात है न, कि सभी ऐतिहासिक घटनाएँ हमारी स्मृति के रसातल से 20 साल बाद ही सतह पर आती हैं । ओ हेनरी की इसी शीर्षक की एक कहानी है, और विश्वजीत-अभिनीत एक हिन्दी फिल्म भी है । बहरहाल, हम बात कर रहे हैं 1996 की । Continue reading

बिना थके थूकते रहे

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Photo source: The Times of India

— यदि आप हमसे पूछें तो रसखान जैसा कवि हिन्दी साहित्य में दूसरा कोई नहीं है । – कहकर उसने अपनी गर्दन को कबूतर के जैसे एक ओर घुमाया और सडक पर थूका, फिर अपने विचारों का सारांश बताया –

— लोगों को तो सूर, तुलसी, कबीर और आजकल निराला, दिनकर से आगे कुछ दिखता ही नहीं है । वरना रसखान को तो समझो बस रस की खान । – कहकर उसने फिर से थूका । Continue reading

सोशल नेटवर्किंग साइटों पर तर्क करने से पहले यह विचार करें

28259439186_7ab5169fd5_nयदि सोशल नेटवर्किंग साइटों पर होने वाले तर्कों को देखें तो लगता है कि हम लोगों के पास किसी भी समस्या का समाधान नहीं है । इससे अधिक बुरी बात यह है कि पुराने मुद्दे सुलझते नहीं, और नए मुद्दे आते जाते हैं । मुझे तो यहाँ तक लगता है कि हममें विचार करने की शक्ति का ही अभाव है । बात अनन्त काल तक तर्क करते रहने और किसी भी नतीजे तक न पहुँचने की नहीं है । बात है तर्कों और विचार-विमर्श की गुणवत्ता की । किसी भी मुद्दे पर समाज की प्रतिक्रिया पढकर अब झल्लाहट ही होती है । फिर राजनेताओं और मंत्रियों की भाषा शैली ! ध्यान से देखें तो पाएँगे कि अधिकतर बातों में अथवा टिप्पणी में  कोई संदेश होता ही नहीं है । इस पर प्रश्न उठता है कि यदि हम किसी भी विषय पर तार्किक टिप्पणी ही न कर सकें अथवा दूसरे के तर्क को सुन-समझ ही न सकें तो फिर हमारी 15 वर्षों की शिक्षा का क्या लाभ ? Continue reading