
सुकुमार राय (1887-1923), स्रोत – विकिमीडिया
पहलवान मुखेमारी का बडा नाम था – कहते हैं कि उसके जैसा पहलवान और कोई नहीं था । ठुकेमारी सचमुच का बडा पहलवान था, मुखेमारी का नाम सुनकर उसकी ईर्ष्या का कोई अंत न था । आखिर एक दिन जब ठुकेमारी से रहा नहीं गया, तो वह कम्बल में नौ मन आटा बाँधकर, उस कम्बल को कंधे पर डालकर मुखेमारी के घर की ओर चल दिया ।
रास्ते में एक जगह बहुत प्यास और भूख लगने पर ठुकेमारी ने कम्बल को कंधे से उतारा और एक पोखर के किनारे आराम करने के लिए बैठ गया । उसके बाद चों-चों करके एक लम्बे घूँट में पोखर का आधा पानी पी गया और बाकी आधे में आटा मिलाकर उसे भी खा गया । आखिर में जमीन पर लेटकर नाक बजाते हुए सो गया ।
उसी पोखर पर एक हाथी रोज पानी पीने आता था । उस दिन भी वह पानी पीने आया, लेकिन पोखर को खाली देखकर उसे बहुत गुस्सा आया । पास ही एक आदमी को सोते देखकर उसने उसके सिर पर अपने भारी पैर से एक लात मारी । ठुकेमारी बोला, “ओरे, अगर सिर दबाना ही है, तो ज़रा ठीक से दबा न बाबू !” हाथी को तब और भी अधिक गुस्सा आया । वह अपनी सूँड से ठुकेमारी को उठाकर ज़मीन पर पटककर मारना चाहता था, लेकिन उससे पहले ही ठुकेमारी झटाक से उठा और हाथी महाराज को झोले में भरकर चल दिया ।
कुछ दूर चलकर वह मुखेमारी के घर पहुँचा और घर के बाहर से ही चिल्लाने लगा, “अरे ओ मुखेमारी ! सुना है कि तुम बहुत बडे पहलवान हो ! हिम्मत है तो आकर लडो न !” यह सुनकर मुखेमारी जल्दी से घर के पीछे एक जंगल में घुस गया । मुखेमारी की पत्नी बोली, “वो तो आज घर पर नहीं हैं । कहीं पहाड ढकेलने गए हैं ।” ठुकेमारी बोला, “यह उसे देकर कहना कि इसका मालिक उसके साथ लडना चाहता है ।” यह कहकर उसने हाथी को उछालकर उनके आँगन में फेंक दिया ।
यह सब देखकर घर के लोग भौचक्के रह गए । लेकिन मुखेमारी का होशियार लडका जोर से चिल्लाने लगा, “ओ माँ रे ! इस दुष्ट आदमी ने मेरी तरफ एक चूहा फेंक दिया ! क्या करूँ बोलो तो ?” उसकी माँ बोली, “डरने की कोई बात नहीं । तुम्हारे पिताजी आकर उसे उचित शिक्षा देंगे । अभी तो झाडू लेकर उस चूहे को फेंक दो ।”
यह बात कहते ही झाडू का झपझप शब्द हुआ और लडका बोला, “ये लो ! चूहा तो नाली में गिर गया ।” ठुकेमारी ने सोचा, ‘जिसका लडका ऐसा, वह निश्चय ही मेरी बराबरी का होगा ।’
घर के सामने एक ताड का पेड था, उसी को उखाडकर ठुकेमारी ने पुकारकर कहा, “ओरे लडके, अपने पिताजी से कहना कि मुझे एक छडी की जरूरत थी, इसीलिए यह लेकर चल दिया ।” लडका एकदम से बोल उठा, “ओ माँ, देख रही हो ? वो दुष्ट आदमी पिताजी की दतुनी (toothpick) लेकर भाग गया ।” ‘दतुनी’ शब्द सुनकर ठुकेमारी की आँखें आलू के जैसे बडी हो गईं । उसने सोचा, ‘कोई जरूरत नहीं है बाबू, उस आदमी के साथ झगडा करने की !’ वह तभी झटपट उस गाँव को छोडकर अपने गाँव की ओर भाग गया ।
मुखेमारी ने घर आकर बेटे से पूछा, “क्यों रे । वह आदमी गया क्या ?” लडका बोला, “वह उस ताड के पेड को लेकर भाग गया ।” “तूने उसे कुछ कहा नहीं ?” “लेकर चला गया, तो मैं भला उसे और क्या बोलता ?” यह बात सुनकर मुखेमारी बहुत गुस्से से बोला, “करमजले ! तूने मेरा बेटा होकर मेरा नाम डुबा दिया ! ज़रूरत पडने पर दो बात भी नहीं बोल सकता ? जा ! आज ही तुझे ले जाकर गंगा में फेंक दूँगा ।” यह कहकर वह नालायक लडके को गंगा में फेंकने के लिए चल दिया ।
लेकिन गंगा तो गाँव के पास नहीं है – वह तो बहुत दूर है ! मुखेमारी चलता है, चलता है, और सोचता है, बेटा जब रोना-पीटना करेगा, तब उसे बोलूँगा, ‘अच्छा, इस बार तुझे छोड दिया ।’ लेकिन लडका तो रोता भी नहीं, कुछ बोलता भी नहीं, वह तो बडे आराम से कंधे पर चढकर ‘गंगा की ओर’ चल रहा है । तब मुखेमारी उसे भय दिखाकर बोला, “अब और देरी नहीं है, गंगा बस आ ही गई !” लडका झट से बोल उठा, “हाँ पिताजी । पानी के बहुत छींटे पड रहे हैं ।” यह सुनकर मुखेमारी चकित हो गया ! वह तुरन्त बेटे को कंधे से उतारकर बोला, “जल्दी से सच-सच बोल तो, उस आदमी से तूने कुछ कहा कि नहीं ?” लडका बोला, “उसे तो मैंने कुछ नहीं कहा । मैं तो माँ से चिल्लाकर बोला कि दुष्ट आदमी पिताजी की दतुनी लेकर भाग गया ।” मुखेमारी जोर से हँसकर उसकी पीठ थपथपाते हुए बोला, “शाबाश बेटा ! बाप का बेटा !”
टिप्पणी – मूल बंगाली से अनुवादित । कहानी का शाब्दिक अनुवाद करने के स्थान पर मैंने प्रत्येक वाक्य के भाव के अनुसार समतुल्य वाक्य लिखने की चेष्टा की है । अन्यथा प्रत्येक भाषा का एक वैशिष्ट्य होता है जिसे दूसरी भाषा में व्यक्त किया ही नहीं जा सकता । पात्रों के नामों का चयन श्री सुकुमार राय ने सोच-समझ कर किया था — ठुकेमारी का अर्थ – जो पीटकर मारे, और मुखेमारी का अर्थ – जो बोलकर मारे । रोते हुए बच्चे, उद्दण्ड बच्चे, गुस्सा बच्चे, उदास बच्चे — सभी प्रकार की बाल मण्डलियों में मैं यह कहानी सफलतापूर्वक सुना चुका हूँ । यही नहीं, इसका उपयोग वयस्क मित्रों के साथ मनमुटाव मिटाने तथा नए मित्र बनाने के लिए भी कर चुका हूँ । आप भी आजमा सकते हैं । विश्वास दिलाता हूँ, निराश नहीं होंगे ।
संदर्भ – ठुकेमारी और मुखेमारी (ঠুকে-মারি আর মুখে-মারি), सुकुमार रचना समग्र, साहित्यम्, कोलकाता ।
बहुत मजेदार बंगला कहानी है। आपने अच्छा अनुवाद लिखा है।
धन्यवाद रेखा जी । अनुवाद का यह मेरा पहला प्रयास है ।
अच्छा प्रयास किया है आपने. बंगाल का साहित्य बहुत समृद्ध है. अनुवाद से अन्य भाषाओं की रचनओं को पढ़ने का अवसर मिलता है.
आपसे पूरी तरह सहमत हूँ । मेरी अनुवाद कार्य को जारी रखने की योजना है । अभी तो हिन्दी से अंग्रेजी में, तथा अन्य भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद कार्य का विचार है । आपके सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी ।
ज़रूर. आप इस महत्वपूर्ण काम को जारी रखे. शुभकामनाएँ !!i
Shandaar…
धन्यवाद भाई !
ऐसा प्रतीत होता है जैसे आप हिंदी साहित्य के लिए बने हो। मुझे लग रहा था जैसे प्रेमचंद की कोई कहानी मेरे सामने आ गयी हो।