सोशल नेटवर्किंग साइटों पर तर्क करने से पहले यह विचार करें

28259439186_7ab5169fd5_nयदि सोशल नेटवर्किंग साइटों पर होने वाले तर्कों को देखें तो लगता है कि हम लोगों के पास किसी भी समस्या का समाधान नहीं है । इससे अधिक बुरी बात यह है कि पुराने मुद्दे सुलझते नहीं, और नए मुद्दे आते जाते हैं । मुझे तो यहाँ तक लगता है कि हममें विचार करने की शक्ति का ही अभाव है । बात अनन्त काल तक तर्क करते रहने और किसी भी नतीजे तक न पहुँचने की नहीं है । बात है तर्कों और विचार-विमर्श की गुणवत्ता की । किसी भी मुद्दे पर समाज की प्रतिक्रिया पढकर अब झल्लाहट ही होती है । फिर राजनेताओं और मंत्रियों की भाषा शैली ! ध्यान से देखें तो पाएँगे कि अधिकतर बातों में अथवा टिप्पणी में  कोई संदेश होता ही नहीं है । इस पर प्रश्न उठता है कि यदि हम किसी भी विषय पर तार्किक टिप्पणी ही न कर सकें अथवा दूसरे के तर्क को सुन-समझ ही न सकें तो फिर हमारी 15 वर्षों की शिक्षा का क्या लाभ ?

फिर टिप्पणी और आक्षेप के उत्तर में हवाला दिया जाता है अधिकार का — ‘आप हैं कौन’, ‘आपको क्या अधिकार है प्रशासन पर किसी प्रकार का आक्षेप करने का’ आदि । कुछ समय पहले ट्विटर पर पढा कि एक मंंत्री को इस बात पर आपत्ति है कि विद्यार्थी, फिल्म अभिनेता आदि प्रधानमंत्री के किसी कार्य पर संदेह करें । लेकिन यदि आपत्ति, विरोध, तर्क ही न रहे तो गणतंत्र ही कहाँ रहा ? असल में आपत्ति का मुख्य कारण है टिप्पणी और आक्षेप का स्वरूप । क्या आपकी आलोचना में कोई तत्व है ? क्या उसके पीछे शोध और विषय का सम्यक् ज्ञान है ? मैं विशिष्ट शिक्षा की बात नहीं कर रहा । आवश्यक नहीं कि आप इतिहास में स्नातक हों अथवा भारत की विदेश नीति पर पी. एच. डी. कर रहे हों । एक जागरूक नागरिक से जितनी आशा की जाती है, बस उतना ही ।

थोडी सी चेष्टा कीजिए । बस आग्रह कर सकता हूँ । अगली बार कोई पोस्ट अथवा टिप्पणी लिखने से पहले आत्म-विश्लेषण कीजिए कि आप जो लिखने जा रहे हैं क्या वह आपकी मानसिक प्रगति को निरूपित करता है ? यदि पोस्ट स्वयं गर्हित प्रकार की हो अथवा कोई संदेश या विचार प्रस्तुत नहीं करती हो, तो उस पर टिप्पणी करना आवश्यक तो नहीं है । और यदि आपके पास कुछ कहने के लिए नहीं है, किन्तु आप वार्ताकार से सहमत भी नहीं हैं, तो मात्र यह ही तो पूछ सकते हैं न कि — “आपको ऐसा क्यों लगता है ?”

मैं अपने आसपास के लोगों, विशेषकर युवकों से, बार-बार यही कहता हूँ कि यदि आप आलोचना करते हैं अथवा किसी विषय पर टीका-टिप्पणी या तर्क करते हैं, तो यह बहुत अच्छी बात है । लेकिन यह भी ध्यान में रखना आवश्यक है कि मात्र लेख लिखने अथवा भाषण देने की तुलना में आलोचना करने के लिए अत्यधिक शिक्षित और जागरूक होने की आवश्यकता है । आप श्री इंद्रकुमार गुजराल की पाकिस्तान नीति पर कुछ विचार रखना चाहते हैं, वाजपेयी – मनमोहन – मोदी के परमाणु कार्यक्रम की तुलना करना चाहते हैं, तो क्या ऐसे विषयों पर आप ज्ञान रखते हैं, क्या आपने शोध या अध्ययन किया है ? अथवा आप भी मात्र कोई फूहड-सा चुटकुला सुनाकर अथवा बे-सिर-पैर के संदेश लिखकर हट जाने वाले हैं ?

इन ‘फेसबुकवीरों’ पर मराठी पत्रिका लोकप्रभा के एक लेख में पत्रकार सुहास जोशी लिखते हैं — “. . . हमारी अपर्याप्त ज्ञान पर आधारित प्रतिक्रिया अनेक लोगों का गलत मार्गदर्शन कर सकती है . . . प्रतिक्रिया न करने वाले लेकिन आया हुआ मैसेज फॉरवर्ड करने वाले और एक-दूसरे के स्टेटस आँख बंद करके शेअर करने वाले लोगों को भी उतना ही जवाबदार समझना होगा । . . . ”

हमारे एक छात्र ने बताया कि यह प्रवृत्ति मात्र अहंकार पोषण ही है । फेसबुक इत्यादि ने लोगों को एक माध्यम दिया है जिससे वे भी आगे आकर दो शब्द कह सकते हैं, सभी विषयों पर कुछ-न-कुछ कह सकते हैं — भले ही उनके पास कहने के लिए कुछ हो या न हो । इससे वे मात्र अपना महत्त्व प्रदर्शित करना चाहते हैं कि ‘हमने भी कुछ कहा’ । बस इतना ही ।

मात्र शिक्षा से कुछ नहीं होता । प्रगति के लिए विचारों की आवश्यकता होती है । और किसी गणतंत्र की प्रगति में चूंकि सभी का योगदान होता है, सो तर्क अवश्यम्भावी है । मात्र आवश्यकता है तर्कों की गुणवत्ता की ।

आज समय है वैश्विक संस्कृति का । चाहे आप अमरीका की युद्धनीति के समर्थक हों या भारत के पंचशील के, एक बात तय है कि विश्व को एक मंच पर लाने और देशों को एक-दूसरे से जोडने में जितना योगदान सूचना और प्रौद्योगिकी ने किया है, उतना और किसी ने भी नहीं । हम बात करते हैं स्वामी विवेकानन्द और स्वामी रामतीर्थ की । किन्तु यह भी सोचिए कि यदि उस समय स्काइप, फेसबुक आदि होते, तो उनके भाषणों और विचारों की पहुँच कितनी दूर तक हो सकती थी । संवाद माध्यम प्रगति और परिवर्तन के पथ पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं । आवश्यकता है सम्यक् प्रयोग की ।

अन्य : Reflection–33 : Words of wisdom for the Facebook warrior.

photo credit: Visual Content Social Media Butterflies via photopin (license)

2 thoughts on “सोशल नेटवर्किंग साइटों पर तर्क करने से पहले यह विचार करें

  1. Learnography

    Social factor is working to publish interactive thoughts on social media. There are many types of individuals like talking brain, learning brain and working brain. Chatpage is the potential of talking brain and it is extensively utilized on social media to collect friends and share statements and stories. The brainpage of knowledge chapter is left behind in fun making process. The development of social factor is significant to peaceful and harmonious community. But it is not observed while making comments or sharing ideas and concepts. Thank you.

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