रचनाकार – गौरव मिश्र
इंद्रासन प्राप्त करो तुम
अस्थिर अशांत इस जग में
क्यों मूक बना सोता है,
यह रत्नविभूषित जीवन
क्यों इसे व्यर्थ खोता है ?
तू नहीं जानता पागल
यह समय कभी नहीं रुकता,
यह काल अमिट अविनाशी
पद चिह्न छोडता चलता । Continue reading