आज के अहंकार-केन्द्रित समाज में जहाँ सभी लोग सदैव आत्मश्लाघा में ही रत रहते हैं, ऐसे दृष्टान्त अत्यन्त विरल हैं जहाँ एक महानायक ने अपने समकालीन एक अन्य महारथी का जयगान किया हो । फिर भी यदि अतीत में झाँकें तो एेसे कई दृष्टान्त हमें मिल ही जाते हैं, जैसे श्रीरामकृष्ण और विद्यासागर, हाइजनबर्ग और रवीन्द्रनाथ का साक्षात्कार, इत्यादि । ऐसे स्तुतिगान न केवल उस महापुरुष की महिमा के लिए उचित श्रद्धांजलि होते हैं, अपितु उन गायक महापुरुष की विनम्रता को भी परिलक्षित करते हैं । इतिहास के पृष्ठों में यत्र-तत्र बिखरे ऐसे स्तुति गान हमारी सांस्कृतिक धरोहर के रत्न-स्वरूप हैं । उस भण्डार से एक रत्न राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (28 फरवरी) के अवसर पर आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
भारतीय नवजागरण के अग्रदूत – आचार्य जगदीश (अनुवाद)
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