लीजिए हम आ गए। आपको बहुत प्रतीक्षा करनी पडी, इसके लिए मुझे खेद है।
आपका हिन्दी के प्रति आकर्षण एवं प्रेम स्तुति-योग्य है। आपने जो मुझे उक्त भाषा में लिखने के लिए उत्साहित तथा प्रेरित किया है, उसके लिए भी मैं स्वयं को कृतज्ञ अनुभव करता हूँ। किन्तु एक सामान्य व्यक्ति के रूप में मेरी भी कुछ सीमाएँ हैं। अपने प्रदत्त कार्य की अवहेलना करके मैं यदि साहित्य रचना कार्य में समय निवेश करूँ, तो शायद इसका अनुमोदन आप भी नहीं करेंगे। इसके विपरीत, सभी सांसारिक कार्यकलापों तथा दायित्वों को तिलांजलि देकर, एक प्रकार से संन्यास ही लेकर, सरस्वती-आराधना में मनोनिवेश करने के लिए अत्यधिक परिपक्वता की आवश्यकता है, जिसका दावा मैं नहीं कर सकता। साथ ही चित्रांकन तो है ही, जो आजीवन मेरा प्रथम प्रेम रहा है। सार यह है कि, मेरे मित्र, समय एक अमूल्य निधि है, और दुर्भाग्यवश हमारे पास इसी पूँजी का अभाव है। इसलिए बन्धु, खेद के साथ कहना पड रहा है कि मैं हिन्दी रचनाओं की नियमितता पर आपको किसी प्रकार का वचन या आश्वासन नहीं दे सकता। यदि भविष्य में मेरी हिन्दी में टंकण करने की गति में सुधार हुआ, तो निश्चय ही आवृत्ति बढाने के विषय पर विचार करूँगा। लेकिन अभी के लिए तो इतना ही। यदि कोई लेखक मित्र अपनी रचना इस मंच पर प्रकाशित करना चाहें, तो मैं उनका हार्दिक स्वागत करता हूँ। वे मेरे अातिथ्य एवं सम्मान का आश्वासन रख सकते हैं।
कुछ बातें आरम्भ में ही कह ली जाएँ तो अच्छा रहे, जिससे बाद में किसी प्रकार की दुर्भावना या मनमुटाव न रहे। मैं लेखन में परिष्कृत हिन्दी का ही प्रयोग करता हूँ। इस विधि में हुए प्रथम आकर्षण के बंधन को मैं अभी तक तोड नहीं पाया हूँ। यद्यपि मेरे हृदय पर मोहन राकेश, शिवानी आदि शासन करते हैं, तथापि लेखन कार्य के क्षेत्र में भ्रमण मेैं जयशंकर प्रसाद एवं मैथिलीशरण गुप्त का हाथ थाम कर ही करता हूँ। वहाँ सौन्दर्य है, सुरक्षा है। हाँ निश्चय ही, मैं किसी प्रकार की तुलना करने की धृष्टता नहीं कर रहा हूँ। उपरोक्त कारणों से ही मैं वाणी और लेखन में परिमार्जित भाषा का प्रशंसक एवं समर्थक हूँ। यदि आप अश्लील भाषा और निम्नगामी विचारों की खोज में हैं, तो आप गलत स्थान पर आ गए हैं।
साधारण हिन्दुस्तानी भाषा से भिन्न इस हिन्दी में एक प्रकार की शालीनता है, सौन्दर्य है। साथ ही हिन्दी साहित्य की अपनी एक विशिष्ट शैली रही है, जिसके कारण दूसरी भाषाओं में समान रूप से विद्यमान विधाओं और रचना शैलियों के अतिरिक्त भी आपको यहाँ बहुत कुछ विशेष मिलेगा। यदि आप देवनागरी से थोडा भी परिचित हैं, तो मैं आपको प्रोत्साहित करूँगा कि आप कुछ और यत्न करके हिन्दी में पारदर्शिता प्राप्त कर लें। आवश्यक नहीं कि आप संपूर्ण हिन्दी साहित्य को पढ डालें। यदि आप जयशंकर प्रसाद, हज़ारीप्रसाद द्विवेदी, रामधारी सिंह दिनकर, मैथिलीशरण गुप्त, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, सुमित्रानन्दन पंत जैसे स्तुतियोग्य रचनाकारों की कुछ रचनाएँ भी पढ सके तो विश्वास मानिए कि आपका श्रम व्यर्थ नहीं हुआ। यह आपका सौभाग्य है कि आप इस देश में, इसकी संस्कृति और जनमानस के बीच रह रहे हैं। यहाँ आपको कई हिन्दी भाषी मिल जाएँगे जो आपकी किसी भी प्रकार की सहायता के लिए प्रस्तुत रहेंगे। इस अपरिसीम सौन्दर्य एवं आनन्द के भण्डार से स्वयं को वञ्चित मत रखिए।
इस ब्लॉग पर सभी रचनाएँ मौलिक लेख तथा कृतियाँ हैं। भाषा हिन्दी, अंग्रेजी तथा उर्दू है। मेरे सीमित ज्ञान के अनुसार भारतीय भूखण्ड पर शायद उर्दू ही एकमात्र ऐसी भाषा है जो दो लिपियों में लिखी जाती है। विद्वानगण कृपया भूल सुधार करें। निश्चय ही, मैं उर्दू का प्रयोग देवनागरी में ही करता हूँ। यदि लेखों में प्रयुक्त किसी भी शब्द से आप परिचित न हों तो कृपया किसी से पूछ लें, या शब्दकोश में ढूँढ लें, या सबसे आसान है, मुझसे सम्पर्क करें। किसी भी स्थिति में अनुमान का आश्रय न लें।
यदि इस व्यस्ततापूर्ण जीवन में मैं आपके लिए विनोद, विचार और आनंद के कुछ क्षण ला सका, तो मेरे लिए यह एक परम उपलब्धि होगी। मित्रों, जीवन के संघर्षों पर आप विजय तभी प्राप्त कर सकेंगे जब आप स्वयं स्वस्थ एवं बलिष्ठ रहेंगे। अपने शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखिए। आशावादी दृष्टिकोण रखने से परिस्थितियाँ कभी भी आप पर हावी नहीं हो पाएँगी। जिस प्रकार आप वर्ष भर अथक परिश्रम करने के बाद प्रत्येक गर्मी की छुट्टियों में सपरिवार किसी सुदूर पर्वतीय अंचल में भ्रमण के लिए जाते हैं, उसी प्रकार प्रत्येक दिन का कुछ समय अपने कुशलक्षेम के लिए भी आरक्षित रखिए।
बहुत ही सुन्दर लेखन है!! सिर्फ इतना ही कहूँगा कि लगभग पच्चीस वर्षों के पश्चात इतनी परिष्कृत और संस्कृतनिष्ठ भाषा पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ, मेरी हार्दिक शुभकामनाएं, कृपया इसे जारी रखें।
रजनीश अत्रे
उत्साहवर्द्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, रजनीश जी। हाँ, कुछ अन्य हिन्दी रचनाओं पर कार्य कर रहा हूँ; उन्हें मासिक रूप से प्रकाशित करने की योजना है। आशा करता हूँ कि आपको पसंद आएँगीं।