चरित्र का प्रतिबिम्ब

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मैं आजकल बहुत संभल-संभल कर बोलता और लिखता हूँ, डर रहता है कि कहीं किसी को मेरी बात चुभ न जाए । वैसे भी कन्या राशि वालों की यही तो दुर्बलता है कि वे आलोचना बहुत करते हैं, वह भी चुभने वाली । लेकिन साथ ही मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि यदि आप हम लोगों की आलोचना को व्यक्तिगत रूप से न लेकर सर्जनात्मक और रचनात्मक रूप से लें तो आप पाएँगे कि वे सभी टिप्पणियाँ वस्तुतः सत्य हैं और आपके हित ही में हैं । चापलूसी तो हम लोग करते नहीं, किंतु प्रेम और मैत्री उनके वास्तविक स्वरूप में ही करते हैं । एक रहस्य की बात कहूँ तो यदि आप कभी हमारी व्यक्तिगत डायरी पढें तो पाएँगे कि जितनी आलोचना हम दूसरों के विचारों और व्यवहार की करते हैं, उससे कई गुना अधिक अपनी स्वयं की करते हैं । यदि आप बाहर के इस आग के दायरे को पार कर सके, तो पाएँगे कि वास्तव में हम अत्यधिक नम्र और कोमल हृदय हैं ।

यदि आप किसी मनोविश्लेषक से पूछें तो वह आपको बताएँगे कि आलोचक, बुद्धिजीवी, सृजनशील तथा विश्वसनीय होने के साथ ही कन्या राशि वाले लोग बहुत ही स्वच्छता पसंद करने वाले भी होते हैं । आश्चर्य की बात नहीं कि मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनते ही सबसे पहले देश की सफ़ाई करने की ठानी । इसी परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत लेख की विषय-वस्तु है — वाणी की स्वच्छता ।

तो मित्र, यह बात असल में चुभने वाली है । विशेषकर यदि यह आप पर लागू होती हो । लेकिन अगर नहीं, तो फिर तो कोई बात ही नहीं है । मैंने तो चेतावनी दे दी, अब मेरी जिम्मेदारी खत्म ।

बन्धु, एक बात सोच-समझकर बताइए । यदि 12 वर्ष स्कूल में नियमित रूप से व्यतीत करने के बाद, तथा 3, 5 वर्ष, या उससे भी अधिक समय कॉलेज में बिताने के बाद भी यदि आप अपने दैनिक जीवन में उसी भाषा का प्रयोग करें जो एक ऐसा व्यक्ति करता है जो परिस्थितियों के कारणवश पढाई नहीं कर पाया, तो आपकी इतनी लंबी शिक्षा का क्या अर्थ रहा ? यदि शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण है, तो फिर उसका प्रभाव तो हमारी प्रत्येक गतिविधि और आचरण में दिखना चाहिए न ? असल में, वाणी में चरित्र का प्रतिबिम्ब बहुत बाद में दिखाई देता है, अतः उसे आप चेतावनी संकेत मान सकते हैं । आरंभ में तो सभी विचार बीज रूप से मन में ही रहते हैं, फिर समान प्रकृति के लोगों की संगति में पडकर अनुनाद जैसी स्थिति आ जाती है, और आप बद से बदतर होते जाते हैं । बहुत बाद में कुत्सित विचारों का प्रभाव वाणी में परिलक्षित होता है । और यही समय होता है जब आप अपना निजी दायरा छोडकर दूसरे की परिधि में प्रवेश करते हैं । आपकी भाषा सुनकर ही लोग आपके व्यक्तित्व का निर्धारण करते हैं ।

इसके दूरगामी परिणाम अनेक हैं । सर्वप्रथम तो आपसे छोटे और कनिष्ठ लोग आपको देखकर आपके ही समान आचरण करने लगते हैं, सो यह अभ्यास अनेक लोगों में फैलने लगता है । इसके आलावा निकट भविष्य में सज्जन समाज में फिर आपका स्वागत नहीं रहेगा और लोग आपसे दूरी बनाए रखेंगे । इसके विपरीत अश्लील भाषा का प्रयोग करने वाले दूसरे लोग आपको अपना परम बन्धु मानकर आपको गले लगाएँगे, जिससे नियमित भाषा सुनने तथा बोलने के कारण निरंतर आपका अभ्यास बलतर होता रहेगा, और एक बार फिर अनुनाद के कारण आप नीचे, और नीचे गिरते चले जाएँगे ।

आपसे कनिष्ठ लोग, जो स्पष्टतः आपको आदर्श मानते हैं, अत्यधिक ग्लानि अनुभव करेंगे और शर्म के कारण अपना सिर झुका हुआ महसूस करेंगे । दूसरी तरफ जो लोग किन्हीं कारणों से शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाए, वे सोचेंगे, “अरे, यह तो इतना पढ-लिखकर भी हमारे जैसा ही आचरण कर रहा है । तो फिर इतना पढने-लिखने का फायदा क्या हुआ ?” याद रखिए, आप चाहें या न चाहें, मानें या न मानें, जिस दिन आप शिक्षा प्राप्त करने निकलते हैं, उसी दिन से आप दूसरों के लिए आदर्श बनने लगते हैं; अन्य अशिक्षित लोग आपको देखकर गर्व अनुभव करते हैं और अपने बच्चों को आपके जैसी ही शिक्षा देने का स्वप्न देखने लगते हैं । आपका नैतिक पतन केवल आपका ही नहीं, बल्कि आपके निकटजनों का, और ऐसे भी लोगों का जिन्हें आप जानते तक नहीं है, और एक तरह से पूरे समाज का ही पतन करने में सहायक होता है । सबसे आश्चर्य की बात यह है कि आपका इन सभी परिणामों और प्रभावों पर ध्यान ही नहीं रहता । आप तो बस अनायास बोल जाते हैं ।

स्पष्ट जान लीजिए कि यह एक अपरिवर्तनीय स्थिति है — एक बार आपने भाषा और वाणी का संयम छोडा तो शुद्ध अवस्था प्राप्त करने में बहुत कठिनाई आएगी । ऊपर की सीढी से गिरकर गेंद नीचे, और नीचे गिरती चली जाती है । इलाज एक ही है — यह ध्यान रखना कि भूलकर भी अश्लील भाषा आपके मुँह से निकलने न पाए ।

मैंने यहाँ कुछ भी अतिशयोक्ति में नहीं कहा है । इस प्रकार का आचरण मैंने प्रत्यक्ष देखा है और आसपास के लोगों से ऐसे लोगों के बारे में विचार भी जाने हैं । बहुत ही दुख होता है जब किसी वरिष्ठ अधिकारी अथवा अध्यापक को भी इस प्रकार की भाषा प्रयोग करते देखता हूँ । कई बार तो किसी परिवार के सदस्यों को एक दूसरे के लिए ऐसी ही भाषा का प्रयोग करते देखा है — जी हाँ, बाप का अपने बच्चों के लिए ।

आपके जीवन की प्रत्येक गतिविधि आपके आचरण पर, आपके चरित्र पर रेखापात करती है, एक दाग या निशान छोड जाती है । इसी कारण से किसी भी समय आपकी भाषा, वाणी, व्यवहार, आचरण आदि का निरीक्षण करने से आपके चरित्र के बारे में पता चल जाता है । और इससे यह पता चल जाता है कि आपका परिवार कैसा था, आप किस माहौल में पले-बढे हैं, आपके मित्र कौन हैं, आप कैसी पुस्तकें पढते हैं, कौन सी फिल्में देखते हैं, आपकी शिक्षा कैसी रही, दूसरे लोगों को आप कितना सम्मान देने की इच्छा रखते हैं, इत्यादि ।

तो मित्र, माननीय प्रधानमंत्री जी के स्वच्छ भारत के निर्माण में अपना योगदान दीजिए — आरम्भ अपनी जिह्वा से कीजिए । मेरी बात का बुरा लगा हो तो क्षमा कीजिएगा, बस गाली मत दीजिएगा ।

photo credit: Just Chatting via photopin (license)

5 thoughts on “चरित्र का प्रतिबिम्ब

  1. kuldeep thakur

    जय मां हाटेशवरी…
    अनेक रचनाएं पढ़ी…
    पर आप की रचना पसंद आयी…
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें…
    इस लिये आप की रचना…
    दिनांक 13/10/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है…
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

    Reply

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