photo credit: Anvica Espejo, espejito mágico ¿Qué nube es la más hermosa? via photopin (license)
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अनायास प्राप्त वस्तु का सम्मान नहीं किया जाता
पेड-पौधे, जन्तु-जानवर आदि के बारे में गहरी जानकारी रखने में मेरी कभी दिलचस्पी नहीं रही, इसलिए मुझे अधिकांश पेडों और जन्तुओं का नाम नहीं पता । यह स्थिति और अधिक कठिन तब हो जाती है जब किसी दूसरी भाषा में कोई लेख पढा जा रहा हो । अब जब अपनी ही भाषा में पौधों का नाम नहीं पता, तो भला दूसरी भाषा में क्या पता चलेगा ! Continue reading
एक सरकारी कर्मचारी की मौत : आन्तोन चेखोव (अनुवाद)

आन्तोन पावलोविच चेखोव (1860-1904), स्रोत – विकिमीडिया
एक सुन्दर शाम को, लगभग उतना ही सुदर्शन एक्जिक्यूटर, इवान द्मित्रिच चेर्व्याकोव, कुर्सियों की दूसरी पंक्ति में बैठा था और दूरबीन से “कॉर्नविल की घंटियाँ” (ओपेरा) देख रहा था । वह देख रहा था और स्वयं को आनन्द की पराकाष्ठा पर बैठा अनुभव कर रहा था । लेकिन अचानक . . . कहानियों में अक्सर यह “लेकिन अचानक” मिलता है । लेखकों का कहना सच है: जीवन अप्रत्याशित घटनाओं से कितना भरपूर है ! लेकिन अचानक उसका चेहरा बिगडा, आँखें घूम गईं, साँसें रुक गईं . . . उसने आँखों से दूरबीन हटाई, झुका और . . . आपछू !!! छींका, जैसा कि आप देख ही रहे हैं । छींकना किसी को भी कहीं भी मना नहीं है । लोग छींकते हैं, पुलिस अधिकारी छींकते हैं, और कभी कभी तो गोपनीय सलाहकार भी । सभी छींकते हैं । चेर्व्याकोव जरा भी शर्मिंदा नहीं हुआ, रुमाल से पोंछा और एक सज्जन व्यक्ति की तरह अपने चारों तरफ देखा: कहीं उसने अपनी छींक से किसी को परेशान तो नहीं किया ? Continue reading
21 फरवरी – अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

शहीद मिनार, ढाका विश्वविद्यालय, बांगलादेश ।
1952 में आज ही के दिन ढाका विश्वविद्यालय, जगन्नाथ कॉलेज, तथा ढाका मेडिकल कॉलेज के छात्रों ने बंगाली को पूर्व पाकिस्तान की दो राष्ट्रीय भाषाओं में से एक बनाने की माँग करते हुए प्रदर्शन किया । ढाका उच्च न्यायालय के सामने उस प्रदर्शन पर पुलिस ने (जो उस समय पाकिस्तान के अधीन थी) गोली चलाकर कई छात्रों की निर्मम हत्या कर दी । उस घटना को स्मरण करते हुए वर्ष 2000 से यह दिन संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है (स्रोत – विकिपीडिया) । Continue reading
बच्ची
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यथार्थ

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चार दशक
जीवन के चार दशक पूर्ण हुए । यदि मूल्यांकन किया जाए, तो कुछ खास खोया नहीं । वस्तुतः जो खोया, उसका खोना अवश्यम्भावी था । प्रकृति के नियमों को स्वीकार कर लेने में ही बुद्धिमत्ता है ।
वैसे देखा जाए, तो कुछ विशेष प्राप्त भी नहीं किया । यदि कोई पूछे कि जीवन की परम उपलब्धि क्या है, तो शायद विचार करने में समय लगेगा । किया तो बहुत कुछ है, सीखा भी बहुत कुछ है, किन्तु उन सभी का वास्तविक मूल्य क्या है, यह जानने का कभी प्रयास नहीं किया । Continue reading
ठुकेमारी और मुखेमारी : सुकुमार राय (अनुवाद)

सुकुमार राय (1887-1923), स्रोत – विकिमीडिया
पहलवान मुखेमारी का बडा नाम था – कहते हैं कि उसके जैसा पहलवान और कोई नहीं था । ठुकेमारी सचमुच का बडा पहलवान था, मुखेमारी का नाम सुनकर उसकी ईर्ष्या का कोई अंत न था । आखिर एक दिन जब ठुकेमारी से रहा नहीं गया, तो वह कम्बल में नौ मन आटा बाँधकर, उस कम्बल को कंधे पर डालकर मुखेमारी के घर की ओर चल दिया ।
रास्ते में एक जगह बहुत प्यास और भूख लगने पर ठुकेमारी ने कम्बल को कंधे से उतारा और एक पोखर के किनारे आराम करने के लिए बैठ गया । Continue reading
पुनश्च
प्रद्योत के जीवन के इस नए चरण में आपका स्वागत है । मेरी साहित्य यात्रा में सहभागी होने के लिए आपका हार्दिक आभार । इस नए अध्याय का आरम्भ मैं प्रातःस्मरणीय महर्षि श्री अरविन्द को समर्पित करता हूँ तथा हिन्दू धर्म पर अपनी पूर्वलिखित लघु टिप्पणी आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ — Continue reading
विश्वास
जब मैं सब्जी खरीदने गया तो दुकानदार का छोटा बच्चा अपनी माँ से साइकिल खरीदने की हठ कर रहा था और उसकी माँ उसे विभिन्न प्रकार से बहलाने का प्रयास कर रही थी । अंत में बच्चा पास में खडी मेरी साइकिल पर चढने लगा । खरीदारी करने के बाद जब मैंने साइकिल निकालनी चाही, तो बच्चा हटने के लिए तैयार न हुआ । मैंने बडे प्यार से कहा – Continue reading